किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
थोड़ा जल स्वयं पी लें और मिश्री प्रसाद के रूप में बांट दें।
कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
अर्थ- हे प्रभू आपके समान दानी और कोई नहीं है, सेवक आपकी सदा से प्रार्थना करते आए हैं। हे प्रभु आपका भेद सिर्फ आप ही जानते हैं, क्योंकि आप अनादि check here काल से विद्यमान हैं, आपके बारे में वर्णन नहीं किया जा सकता है, आप अकथ हैं। आपकी महिमा का गान करने में तो वेद भी समर्थ नहीं हैं।
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अपना मुंह पूर्व दिशा में रखें और कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
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